भारतीय रियासतों के एकीकरण की कहानी

भारत के जिस भू-भाग पर हम आज रहते हैं वह आजादी के पहले और आजादी के बाद वैसा नहीं था जैसा आज का भारत है, भारत कई हिस्सों में बंटा हुआ था।

लगभग 565 देसी रियासतों को जोड़कर भारत का नक्शा और भारत का निर्माण हुआ।

1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ने देशी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य (देश) के रूप में जारी रखने का विकल्प दिया।

3 जून 1947 को आधिकारिक रूप से यह तय हुआ कि भारत को दो टुकड़ों में बांटा जाएगा भारत और पाकिस्तान, हिंदू और मुस्लिम के आधार पर भारत का विभाजन हुआ, पाकिस्तान की मांग कोई नई नहीं थी ना कोई आंदोलन हुआ,यह मुस्लिम लीग द्वारा चौधरी रहमत अली और मोहम्मद अली जिन्ना जैसे नेताओं ने इस को जन्म दिया और भारत में बंगाल क्षेत्र में संप्रदायिक दंगे ने इसको बढ़ावा दिया। बंटवारे से पहले ही लगभग 8000 से ज्यादा लोगों की मौत कोलकाता में सांप्रदायिक दंगों में हुई

जिन्ना की टू नेशन थ्योरी  और गांधी जी का भी झुकाओ बंटवारे की ओर देखने को मिला बढ़ते हुए  सांप्रदायिक घटनाओं से।

कहने को तो भारत आधिकारिक रूप से 15 अगस्त 1947 को आजाद हो रहा था पर भारत ही नहीं बल्कि लगभग 565 देशी रियासतें आजाद हो रही थी उनको यह पूर्ण अधिकार था कि वे भारत  या  पाकिस्तान किसी के भी साथ जाकर अपनी रियासत का विलय कर सकते हैं या फिर अपने रियासतो को स्वतंत्र देश घोषित कर सकते हैं।

उस समय इन 565 से अधिक रियासतों ने स्वतंत्र भारत के 48 प्रतिशत क्षेत्र को कवर किया था।

जुलाई 1947 तक, रियासतों के राजकुमारों को पता चला  जिन्होंने ज्यादातर रजवाड़ों ने भारत में शामिल होने का फैसला किया था। और ऐसी भी रियासतें  थी जो खुद को स्वतंत्र रखना चाहती थी या फिर पाकिस्तान के साथ मिलना चाहती थी इनमें,जोधपुर,त्रावणकोर,हैदराबाद,जम्मू और कश्मीर,भोपाल,जूनागढ़,जैसलमेर,बीकानेर जैसी रियासतें शामिल थी।

आजादी से 2 महीने पहले त्रावणकोर (आज के केरल और तमिलनाडु का दक्षिण भाग का हिस्सा),  ऐसी रियासत थी जिन्होंने आजादी से पहले 11 जून और हैदराबाद (आज के आंध्रप्रदेश,कर्नाटक,महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ के जिलों तक फैला था) हैदराबाद इन 5 राज्यों तक फैली हुई देश की सबसे बड़ी रियासत थी और उस समय 12 जून 1947 को खुद को स्वतंत्र देश के रूप में घोषित किया। 

ऐसे में इन रियासतों को भारत के साथ जोड़ना एक बड़ी चुनौती बन गई थी इसी को देखते हुए सरदार वल्लभभाई पटेल ने  जो उस समय के उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री थे, वीपी मेनन (राज्यों के मंत्रालय के सचिव) की सहायता से उन्होंने देशी रियासत मंत्रालय गठन किया और अपनी देखरेख में रियासतें जोड़ने का जिम्मा अपने हाथों में स्वयं लिया।

हैदराबाद, जूनागढ़,त्रावणकोर,भोपाल,जैसलमेर,बीकानेर,जोधपुर और जम्मू और कश्मीर रियासत भारत के साथ नहीं मिलना चाहती थी

स्वभाविक है बटवारा धार्मिक तौर पर हुआ था तो कुछ रियासतें ऐसी थी जिनके नवाब और राजा मुस्लिम थे, तो पाकिस्तान मुस्लिम की नींव पर बना था तो वह पाकिस्तान की तरफ जाना ज्यादा सहूलियत समझते थे इसमें हैदराबाद जूनागढ़ भोपाल जैसी रियासत शामिल थी जिनके शासक मुस्लिम थे

और पाकिस्तान इनको तमाम तरीके के लालच देकर या फिर इन रियासतों को हर हाल में हड़पना चाहता था।

जोधपुर रियासत में एक हिंदू राजा और एक बड़ी हिंदू आबादी होने के बावजूद, अजीब तरह से पाकिस्तान की ओर झुकाव था।,जोधपुर के राजकुमार, हनवंत सिंह ने माना कि उन्हें पाकिस्तान से बेहतर सौदा मिल सकता है क्योंकि उनकी रियासत पाकिस्तान से सटी थी।

सीमावर्ती राज्य में पाकिस्तान में शामिल होने के जोखिमों को देखकर, पटेल ने तुरंत राजकुमार से संपर्क किया।

आजादी से 3 दिन पहले त्रावणकोर ने ओर 4 दिन पहले जोधपुर रियासतों ने भारत के इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर करके भारत के साथ विलय किया

भारत की आजादी के बाद भी जूनागढ़,हैदराबाद,भोपाल और जम्मू और कश्मीर रियासते भारत का हिस्सा नहीं थी यह अपने आप में स्वतंत्र  रियासते थी

क्या था देसी रियासत का मामला ?

जिस ब्रिटिश भारत की हम बात कर रहे हैं उसमें छोटे बड़े सब मिलाकर लगभग 565 देसी रियासतों के रजवाड़े शामिल थे इन रियासतों पर अंग्रेजो का पूर्ण शासन था इन राज्यों की अपनी सेना,पुलिस,कानून अपनी मुद्रा तक थी इन रजवाड़ों ने ब्रिटेन की राजगद्दी की गुलामी कबूल कर ली थी जिसे पैरामाउंटसी कहा जाता था और जब अंग्रेज भारत छोड़कर जा रहे थे तो यह पैरामाउंटसी भी खत्म हो जाती और सभी रजवाड़े अपनी रियासतो का भविष्य तय कर सकते थे।

सीधे साफ शब्दों में कहें तो जब अंग्रेज भारत आए थे तो भारत मे कई रियासते अलग-अलग थी और उनकी अपनी सेना,पुलिस,कानून,मुद्रा व अपने विशेषाधिकार थे अंग्रेजों ने इनको जीतकर शासन किया और जब अंग्रेज जा रहे थे तो इनको जैसा पाए थे वैसा ही इनको छोड़ कर जा रहे थे क्योंकि यह सभी रजवाड़े ब्रिटिश शासन के अधीन थे जिसे लैप्स ऑफ़ पैरामाउंटसी कहाँ  गया

15 अगस्त1947 को देश आजाद हो चुका था पर तमाम रियासतें थी जो भारत का हिस्सा नहीं थी इसमें भोपाल,हैदराबाद,जूनागढ़ और जम्मू और कश्मीर जैसी बड़ी रियासतें थी।

हैदराबाद,जम्मू और कश्मीर,जूनागढ़ और भोपाल आजादी के बाद ऐसी रियासत थी जो भारत का हिस्सा नहीं थी।

सरदार वल्लभ भाई पटेल के कड़े और मजबूत प्रयासों के द्वारा हैदराबाद,जूनागढ़ और जम्मू कश्मीर जैसी रियासत जो उस समय भारत के आजाद होने के बाद भी साथ नहीं आना चाहती थी उनको भी सरदार पटेल ने अपने दृढ़ निश्चय संकल्प से और नवाब के सख्त बागी तेवर के खिलाफ  सैनिक कार्यवाही के माध्यम से इन रियासतों का  भारत में विलय किया  गया।

24 सितंबर 1947 को जूनागढ़ रियासत का भारत से विलय हुआ,भोपाल का 1 मई 1949 को,हैदराबाद का 17 सितंबर 1947 को और जम्मू और कश्मीर का विलय 27 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ हुआ, ये ऐसी रियासतें थी  जो आजादी के बाद भी भारत का हिस्सा नहीं थी।

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